समस्तीपुर : बाल मजदूरी दीमक की तरह है जो बच्चों के बचपन की खुशहाली को धीरे-धीरे खायें जा रहा है। इसे रोकनें के लिए कई सरकारी गैर-सरकारी संस्थाएं अपनें स्तर से काम कर रही है, फिर भी विभागीय अधिकारियों की असंवेदनशीलता और बाल मजदूरी करानें वाले नियोक्ता से मासिक धन उगाही, शिक्षा व्यवस्था में कमी, परिवार की जिम्मेदारी और नशापान के कारण दिन व दिन बाल मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती हीं जा रही है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहनें, मजबूरन, माता-पिता के दबाव में, घर में कमाऊं सदस्यों के गुज़र जानें, मां-बाप की बिमारी, पिता के नशेरी होंने के कारण भी नौनिहालों का बचपन बाल श्रम की ओर जबरन ले जाता है और कोई बच्चा जब एक बार बाल श्रम के दल-दल में फंस गया तो उसके चक्रव्यूह से निकल पाना असंभव सा हो जाता है। जब हमारे देश का भविष्य कहलानें वाला बचपन दूकानों, ढाबों, गैराजों, सरकारी सेवकों और धन- कुबेरों के घरों में उनके बच्चों की देखभाल, बर्तन मांजने, चुल्हा चौका करनें और कमोवेश बचपन के खरीददार मालिकों के यौन हिंसा के शिकार बच्चों का वर्तमान हीं अंधेरे में गुम हो गया हो, तो उस देश का भविष्य क्या होगा। अक्सर देखा गया है कि हमारे समाज का प्रबुद्ध वर्ग, तथाकथित सरकारी पदाधिकारियों, न्यायालयों में न्याय की गाथा लिखने वाले माननीय, डॉक्टर, वकील, राजनेता, व्यवसायिक घरानों में नियोजित बच्चों का शोषण भी यही प्रबुद्ध नागरिक हीं करता है। घर की हालत को सुधारने के लिए मां-बाप के सपनों को सजाने-संवारने के लिए बिकता हुआ बचपन कब मानव तस्करों, बाल तस्करों और यौन दूर्व्यापारियों के हाथ का शिकार बन जाता है, पता हीं नहीं चलता है। इस सिसकते बचपन को खुशहाल बनाने वाली सरकारी एजेंसियों श्रम विभाग, मानव तस्करी यूनिट, बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण इकाई, चाइल्ड हेल्पलाइन, स्पेशल जूबेनाइल पुलिस यूनिट, बाल श्रमिक आयोग, राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग तथा राष्ट्रीय – अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी सामाजिक संस्थाओं के कार्यरत रहते हुए भी बाल दूर्व्यापारी अपनें मकसद में कामयाब हो जा रहें हैं, इसका मतलब है कि सरकारी महकमा सही से काम नहीं कर रहा है। जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र जो समस्तीपुर सहित लखीसराय, वैशाली जिला में बाल अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए दशकों से प्रयासरत है। जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के सचिव सुरेन्द्र कुमार नें बताया कि समस्तीपुर जिला में वर्ष 2022 से अबतक हमनें तकरीबन 150 बाल श्रमिकों को चिन्हित कर श्रम विभाग, जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, स्पेशल जूबेनाइल पुलिस यूनिट और जिला प्रशासन को लिखित रूप में तथा ई-मेल से सूची उपलब्ध कराया है। जिसमें इन तीन सालों में श्रम विभाग नें एक तिहाई बाल श्रमिकों का रेस्क्यु नहीं कर पाया है और जिन बाल श्रमिकों को चिन्हित जगह से छुड़ा कर परिवार में भेजा गया है, उनमें से कई बच्चों को किसी भी तरह के सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, रिहैबिलिटेशन योजनाओं का लाभ भी नहीं मिला है और न हीं चाइल्ड लेबर ट्रैकिंग सिस्टम में नाम दर्ज हो पाया है। यहां तक कि जब किसी बाल श्रमिक बच्चे का रेस्क्यू कर बाल गृह में आवासन के लिए भेजा जाता है तो उन बच्चों के माता-पिता को अपनें बच्चों से मिलने तथा घर वापसी के लिए भी नाजायज़ ख़र्च करनें को विवस किया जाता है। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि नियोक्ता के यहां से बाल श्रमिकों के रेस्क्यू टीम द्वारा रेस्क्यू करतें हीं विभिन्न रसुखदारो, नेताओं का दबाव बनना शुरू हो जाता है कि नियोक्ता पर एफ आई आर न हो। जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के सचिव नें दाबे के साथ कहा कि यदि श्रम विभाग पुरी गोपनीयता के साथ हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए बाल श्रमिकों के नियोक्ताओं के सूची में चिन्हित स्थानों पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती है तो एक सप्ताह में समस्तीपुर जिला में 500 से ज्यादा बाल श्रमिकों को विमुक्त करा कर सैकड़ों नियोक्ताओं और दलालों पर मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। लेकिन दलालों और चाटुकारों से घिरा श्रम संसाधन विभाग, समस्तीपुर सिर्फ और सिर्फ धावा दल का दिखावा भर कर सकती है।