भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर में आँपरेशन केलर लांच किया हैं

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प्रदीप कुमार नायक
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
सेना का ‘ऑपरेशन केलर’ क्या है:शोपियां का जंगल कैसे बना आतंकियों का सेफजोन; लोकल कश्मीरी मुस्लिम ही देते हैं रहने की जगह।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारतीय सेना ने 13 मई को जम्मू-कश्मीर में ‘ऑपरेशन केलर’ लॉन्च किया है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के शोपियां इलाके में आतंकियों को ढूंढकर उनका एनकाउंटर किया जा रहा है। सेना ने अब तक तीन आतंकी मार गिराए हैं l
आइए जानते हैं कि
आखिर सेना ने इसका नाम ‘ऑपरेशन केलर’ क्यों रखा, शोपियां इलाका आतंकवादियों का गढ़ कैसे बना, क्या अब वहां इस तरह के ऑपरेशन होते रहेंगे,
13 मई की दोपहर 12 बजकर 53 मिनट पर भारतीय सेना के असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल ऑफ पब्लिक इन्फॉर्मेशन यानी ADGPI ने सोशल मीडिया X पर ऑपरेशन केलर की जानकारी दी। पोस्ट में लिखा-
‘भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स (RR) विंग को खुफिया सोर्सेज से शोपियां के शोकल केलर इलाके में आतंकियों के होने की जानकारी मिली । इसके बाद भारतीय सेना ने ‘सर्च एंड डिस्ट्रॉय’ यानी आतंकियों को ढूंढकर मारने का ऑपरेशन लॉन्च किया।’
दरअसल, ये ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के ‘शोकल केलर’ नाम के गांव में जारी है। ये गांव शोपियां के केलर ब्लॉक में आता है। ये शोपियां कस्बे से 12.5 किमी और श्रीनगर से 47 किमी. दूर है। ये इलाका घने जंगलों से घिरा है, जिसे ‘सुखरू फॉरेस्ट’ कहा जाता है। इस इलाके से अक्सर आतंकी गतिविधियों की खबरें आती रहती हैं।
आतंकवादी और घुसपैठिए पीर पंजाल की पहाड़ियों को बॉर्डर पार करने के लिए सबसे मुफीद मानते हैं। दरअसल, पीर पंजाल की पहाड़ियां पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी PoK और जम्मू-कश्मीर के बीच फैली हुई हैं। इस इलाके में जंगल इतने घने हैं कि महज 100 मीटर दूर से भी किसी हलचल को देख पाना मुश्किल है।
शोपियां जिला, पीर पंजाल की पहाड़ियों से सिर्फ 141 किमी दूर है। पीर पंजाल दर्रे से शोपियां की दूरी सिर्फ 40 किमी रह जाती है। पीर पंजाल के आसपास के इलाके जैसे- कुपवाड़ा, उरी, तंगधार, पुंछ और राजौरी में आतंकी लंबे समय से घुसपैठ करते रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट जुनैद हाशमी कहते हैं, ‘दक्षिणी कश्मीर में सबसे ज्यादा घुसपैठ पुंछ और राजौरी से होती है। पुंछ, मुगल रोड के जरिए शोपियां से जुड़ता है। इसी रास्ते से आतंकी शोपियां में दाखिल होते हैं। यहां शोकल केलर गांव के पास का सुखरू एरिया बहुत खूबसूरत और घना जंगल है, जहां आतंकी अपने हाइडआउट बनाते हैं।’
रिटायर्ट लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं, ‘कुपवाड़ा, उरी, तंगधार, पुंछ और राजौरी जैसे इलाके पहाड़ी हैं। जबकि शोपियां मैदानी इलाका है, यहां सेब के बागान और घने जंगल हैं। सड़क या ट्रांसपोर्ट की कोई कमी नहीं है। आबादी काफी ज्यादा है। एक बार आतंकी इन इलाकों तक आ गए तो उन्हें अपनी बाकी एक्टिविटीज करने में कोई दिक्कत नहीं होती। ये उनके लिए एक सेफजोन की तरह है।’
भारत और पाकिस्तान के बीच 3323 किमी लंबा बॉर्डर है। इसमें से करीब 1000 किमी बॉर्डर जम्मू-कश्मीर में मौजूद है। सीमापार से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ के पीछे दो बड़ी वजहें हैं l

  1. पूरे साल बाड़ेबंदी रखना मुमकिन नहीं
    जम्मू-कश्मीर में LoC और इंटरनेशनल बॉर्डर की कुल लंबाई करीब 1000 किमी है। लगभग पूरी सीमा पर बाड़ेबंदी की गई है।
    रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच के मुताबिक, हर साल बर्फबारी, हिमस्खलन जैसी कुदरती समस्याओं के चलते जम्मू-कश्मीर में करीब 400 किमी बाड़ खराब हो जाती है, जिसे गर्मियों के समय दोबारा ठीक करवाना होता है।
    रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा के मुताबिक, बाड़ ठीक करने में लगने वाला वक्त एक तरह का गैप पैदा करता है, जिसका फायदा आतंकी उठाते हैं।
    इन सभी जिहादी मजहब के आतंकियों को स्थानीय मुस्लिम कश्मीरियों की सहायता भी मिलती है जिससे वो अधिक समय तक छुपे हुए रह कर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
    पुंछ , राजौरी से घुसपैठ करने वाले आतंकी जंगलों में या इनमें मौजूद गुफाओं में अपना शुरुआती ठिकाना बनाते हैं। शोपियां में दाखिल होने पर अलगाववादी सोच के लोकल लोग इन आतंकियों को सपोर्ट करते हैं और हाइडआउट बनाने यानी छिपने में मदद करते हैं।
    लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं, ‘अलगाववादी सोच के चलते लोकल युवा आतंकी संगठनों से आसानी से जुड़ जाते हैं। शोपियां के कई लोग हमेशा से आतंकियों को घरों में छिपाने से लेकर बाकी लॉजिस्टिक्स से मदद करते रहे हैं।’
    ऑपरेशन केलर में अब तक 3 आतंकी मारे गए हैं, जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। ADGPI ने सोशल मीडिया X पर पोस्ट किया कि राष्ट्रीय रायफल्स को मिले इनपुट के आधार पर ऑपरेशन केलर लॉन्च किया गया है। ये अभी जारी है।
    ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन केलर दोनों अलग-अलग हैं। दोनों का मकसद अलग-अलग है। दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर का मकसद आतंकी ठिकानों पर स्ट्राइक कर उन्हें नेस्तनाबूद करना है। यानी आतंक को जड़ से नष्ट करना। जबकि ऑपरेशन केलर का मकसद साउथ कश्मीर के जंगलों में छिपे आतंकियों का एनकाउंटर करना है। फिलहाल ये दोनों ही ऑपरेशन जारी हैं।
    इसके अलावा पहलगाम आतंकी हमले में शामिल आतंकवादियों की तलाश अभी जारी है। ऑपरेशन केलर भी इसी का हिस्सा है। इसके शुरू होने से पहले सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर के कई जिलों में तीन आतंकियों के पोस्टर लगाए हैं। इनकी पुख्ता जानकारी देने पर 20 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।

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