लेखक: अर्पणा मिश्रा सीतापुर उत्तर प्रदेश
- कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का अवसर भी देता है।
- धार्मित मान्यता के अनुसार कुंभ में स्नान करने से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- यह धार्मिक आयोजन सामाजिक और सांस्कृतिक समागम का प्रतीक माना जाता है।
- हिंदू संस्कृति और परंपराओं में कुंभ मेले का विशेष महत्व है।
- यह अद्वितीय मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
- हालांकि, इसमें खगोलीय घटनाओं का भी गहरा प्रभाव माना जाता है। आइए जानते हैं किन दो ग्रहों की स्थिति के अनुसार स्थान का चयन किया जाता है।
- महाकुंभ का आयोजन केवल चार स्थानों पर ही होता है, जिसमें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन शामिल हैं।
- इसका चयन ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
- ज्योतिष के अनुसार, गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की विशिष्ट राशियों में उपस्थिति के अनुसार तय होता है कि महाकुंभ किस स्थान पर आयोजित किया जाएगा।
प्रयागराज महाकुंभ
- जब गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तो महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित होता है।
- 2025 में यही स्थिति होने के कारण महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है।
नासिक महाकुंभ
- गुरु और सूर्य जब सिंह राशि में होते हैं, तो यह आयोजन नासिक में होता है।
- अगला नासिक महाकुंभ 2027 में होगा।
हरिद्वार महाकुंभ
- गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तो महाकुंभ हरिद्वार में लगता है।
- 2033 में हरिद्वार में यह मेला आयोजित होगा।
उज्जैन महाकुंभ
- सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तो महाकुंभ उज्जैन में लगता है।
- उज्जैन का अगला महाकुंभ 2028 में होगा।