21 वीं सदी के केन्द्रीय बजट ने बिहार को नहीं दी कोई बड़ी सौगात, इस बार भी रह गया खाली हाथ। चुनावी वर्ष होने के बावजूद भी बिहार को पिछड़ेपन से उबारने में केन्द्र से मदद के कोई आसार नहीं। 2024-25 के अंतरिम बजट से बिहार को कुछ खास नहीं मिला। राज्य को जो कुछ भी मिलेगा वह घोषित योजनाओं में हिस्सेदारी से अधिक नहीं होगा। आम बजट 2024 से बिहार को निराशा हाथ लगी है। बिहार में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनने के बाद से उम्मीद की जा रही थी कि मोदी सरकार नीतीश कुमार की कुछ मांगें पूरी कर सकती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में बिहार के लिए ना तो विशेष पैकेज की घोषणा हुई और ना ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिला। जब बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार की नींव डाली जा रही थी तो उस वक्त राजनीतिक गलियारों में बीजेपी और जेडीयू के बीच नए समझौता को लेकर कई बातें सामने आई थी। इस समझौते में आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सीटों की संख्या और वर्तमान में सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार के हाथ सौंपने की बात तो थी ही। मगर, इन समझौतों से इतर एक और समझौते की भी चर्चा हुई थी। तब यह बात राजनीतिक गलियारों में उछाली गई कि केंद्र सरकार विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज की घोषणा करेगी ताकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के बीच जाकर यह कहेंगे कि बिहार के हित में, राज्य के विकास के लिए एनडीए के साथ समझौता किया।
बिहार की जनता ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 में से 39 सांसद दिये ताकि वे संसद में उनकी बात करें, उनकी समस्या को रखें, उनके रोजगार के अवसर बढ़ाए जाय, बिहार में कल- कारखाने लगें, अस्पतालों में ईलाज की सुविधा बेहतर हो, उच्च शिक्षा उनके बच्चों को आसानी से प्राप्त हो सके, शिक्षा सस्ती व शुलभ हो, कोई बेघर ना रहे, भ्रष्टाचार खत्म हो, आवागमन के साधन शुलभ हो। इस अंतरिम बजट में भी बिहार को न तो विशेष राज्य का दर्जा मिला और न ही कोई विशेष पैकेज ही। वह भी तब जब नीतीश कुमार ने पिछले साल जातीय सर्वे कराकर बिहार के पिछड़ेपन को भी बताया। इसके सपोर्ट में नीतीश कुमार ने आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशित कराकर बिहार की गरीबी और इस राज्य के पिछड़ने का कारण भी बताया।
मनरेगा जैसी योजनायें जो सबसे कमजोर लोगों के लिए बनायी गयी थी आज सबसे अधिक भ्रष्टाचार उसी में है। कार्यों का संचालन, अनियमितता हर स्तर पर धूसखोरी देखने को मिल रही है। एक तरफ सरकार कहती है कि हम किसान की आय दुगुनी कर देंगे और दूसरी ओर किसानों की जरूरत की सामान उर्वरक, बीज, कृषि यंत्र की कीमत कई गुनी तक बढ़ गई है। किसानों की आय भले ही दुगनी न हूई हो पर व्यय तीन गुनी जरूर हो गई है। सरकार यदि मनरेगा को कृषि, किसानों से जोड़ देगी तो शायद किसान और मजदूर दोनों का कल्याण हो जायेगा। किसानों को मनरेगा के मजदूरों से कार्य करवाने और मनरेगा मजदूरों को कृषि से संबंधित कार्यों में लगाने से बेहतर संतुलन मिलेगी। भारत एक कृषि प्रधान देश है तो सचमुच कृषि के क्षेत्र में विकास करने की जरूरत है न कि कृषकों को परेशान करने की। आज किसानों को किसान सम्मान निधि योजना से 500 रुपये महीना दिया जाता है अर्थात् साल में 6000 रुपये और साधारण किसानों से भी कई गुना वसूल लिया जाता है।
बिहार के हिस्से में पहले दशक के बरौनी रिफाइनरी और फर्टिलाइजर कारखाना ही बचे है। बिहार के बटवारें का खामियाजा यहाँ के लोग आज भी भोग रहे हैं। बिहार के हिस्से में जो भी नदी घाटी परियोजना आई सैकड़ों करोड़ निगलने के बाद भी पूरा होने का नाम नहीं ले रही है। इनसे अपेक्षित उद्देश्यों का पूरा होना अभी कोसों दूर है।
बिहार को अलग राज्य बनने के बाद केन्द्र से 2000-3000 करोड़ का पैकेज मिलता था वो भी बंद है। एक आखरी उम्मीद थी कि पिछड़ चुके लोगों की आर्थिक हालात को सुधारने के लिए बिहार सरकार ने हर परिवार को जो 2 लाख रुपये देने की घोषणा की थी इस कार्य हेतु भी कोई विशेष मदद नहीं मिली।






















































