इजराइल पर हमास के हमले एक सोची समझी मूर्खता

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प्रदीप कुमार नायक
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
इजरायल पर हमला करके हमास को क्या हासिल हुआ?अपने चरित्र के अनुसार एक बार फिर कतर बिचौलिया बना और इजरायल को इस बात पर राजी करने में सफल रहा कि वह कुछ दिन के लिए ही सही हमास पर हमले बंद कर दे। लंबी बातचीत चली और सुलह हुई कि इजरायल चार दिन के लिए हमले रोकेगा। बदले में हमास इजरायल के 13 बंधकों का पहला जत्था छोड़ेगा। आज शुक्रवार सुबह से इजरायल ने अपने बमवर्षकों को चार दिन के लिए रोक दिया है। बदले में हमास भी इजरायली बंधकों का पहला जत्था छोड़ रहा है। आगे की बातचीत यह चल रही है कि हर 10 बंधकों की रिहाई पर इजरायल एक दिन का युद्ध रोकेगा, वरना हमास पर उसका हमला जारी रहेगा।*
लेकिन सवाल यह है कि हमास को इस युद्ध की शुरुआत करके हासिल क्या हुआ? मीडिया की जांच पड़ताल में यह बात निकलकर सामने आयी है कि हमास ने बहुत सुनियोजित तरीके से 7 अक्टूबर को इजरायल पर औचक हमला किया था। इसके लिए वो महीने से न सिर्फ तैयारी कर रहे थे बल्कि इजरायल को चकमा भी दे रहे थे। बीते कुछ महीनों से हमास के लीडर बार बार इजरायल से लड़ाई न लड़ने और सहअस्तित्व में रहने का संकेत कर रहे थे। लेकिन यह हमास की चाल थी ताकि इजरायल उनकी ओर से लापरवाह हो जाए और वो अचानक से इजरायल पर हमला करके अधिक से अधिक नुकसान पहुंचा सके।*
7 अक्टूबर को इजरायली त्यौहार के दिन उन्होंने ऐसा ही किया भी। लगभग 1200 लोगों की हत्या कर दी। 6900 लोगों को लहुलुहान कर दिया और 200 से अधिक को बंधक बना लिया। इजरायल पर यह बहुत बड़ा हमला था जिसने उनके पूरे सुरक्षा तंत्र को हिलाकर रख दिया। उन्हें सारी परिस्थितियों को समझने में दो दिन लग गये। अल्पमत की सरकार चला रहे पीएम बेंजमिन नेतन्याहू से लेकर जासूसी एजेंसी मोसाद तक पर सवाल उठे कि इतना बड़ा हमला हो गया लेकिन इजरायल गवर्नमेन्ट को इसकी भनक तक नहीं लगी। लेकिन जब इजरायल ने पूरी तैयारी के साथ हमास के ठिकानों पर हमला शुरु किया तो आज 48वें दिन हमास ही नहीं आधा गाजा तबाह हो चुका है।*
दुनिया के लिए हमास एक घोषित आतंकी संगठन जरूर है, लेकिन गाजा पट्टी के लिए वह सबकुछ है। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास की हैसियत एक कठपुतली से अधिक कुछ नहीं है जो सिर्फ संयुक्त राष्ट्र और मुस्लिम संगठनों के फोरम पर जाकर फिलिस्तीन के नाम पर बैठ जाते हैं। वो यासिर अराफात की पीएलओ से जुड़े रहे हैं और वर्तमान में अराफात की फतह पार्टी के प्रेसिडेन्ट भी हैं। लेकिन गाजा पट्टी में जमीन पर हमास का कब्जा है। उनकी ही सरकार चलती है और वही मिलिट्री ऑपरेशन करते हैं।*
गाजा पूरी तरह से हमास के हाथ में है और उन्होंने लगभग 30 हजार मुजाहिदों की फौज भी बना रखी है। इनको किसी आर्मी की तर्ज पर संगठित किया गया है। इन्हें 24 बटालियन और 140 कंपनी में विभाजित किया गया है। कुछ स्पेशल ऑपरेशन यूनिट भी बनायी गयी है। हमास के पास गाजा में अनोखे तरह के शेल्टर भी मौजूद हैं जिनमें अस्पताल से लेकर भूमिगत सुरंगें भी शामिल हैं। इसका मतलब साफ है कि हमास इजरायल से लड़ने के लिए ही बना है और यह इससे कभी पीछे नहीं हटनेवाला है।*
कहा यह भी जाता है कि यासिर अराफात की पार्टी को कमजोर करने के लिए ही मोसाद ने रेडिकल इस्लाम पर चलनेवाले मुस्लिम ब्रदरहुड से नाराज अहमद यासीन को अपने साथ मिलाकर हमास की बुनियाद डलवाई थी। इजरायल को यासिर अराफात के ‘शांतिपूर्ण प्रयासों’ की काट चाहिए थी जिसका गाजा पट्टी पर कब्जा हो और इसके लिए अहमद यासीन तैयार हो गया था। शुरुआत में हमास एक फलाही (इंसानियत वाले) काम करने वाला संगठन बनकर उभरा लेकिन जैसे ही उसने गाजा पट्टी के स्थानीय शासन पर कब्जा किया, उसने अपना रूप बदल लिया।
निश्चित रूप से इसके लिए उसे ‘इजरायल के दुश्मनों’ से मदद भी मिली लेकिन 7 अक्टूबर को उसने जिस तरह से इजरायल पर एकतरफा हमला किया, वह गाजा में रहनेवाले फिलिस्तीनियों को बहुत भारी पड़ गया। आज डेढ महीने बाद उत्तरी गाजा खंडहर में तब्दील हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय एजंसियों का अनुमान है कि गाजा की 23 लाख की आबादी में लगभग 17 लाख फिलिस्तीनी इस युद्ध में विस्थापित हो चुके हैं। आधा दर्जन से अधिक कस्बे और शहर तबाह हो चुके हैं। नागरिक सुविधाएं ध्वस्त हो चुकी हैं और हमास को चार दिन के युद्ध विराम के लिए उसी इजरायल से समझौता करना पड़ रहा है जिसका नामोनिशान मिटा देने की कसमें खाता रहा है।*
इसलिए इजरायल पर हमास के हमले को एक सोची समझी मूर्खता से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। जिन फिलिस्तीनियों के लिए फलाही काम करने के नाम पर उसने गाजा में पैठ बनायी थी, आज वही फिलिस्तीनी तबाह और बर्बाद हो चुके हैं। इसका दोष इजरायल को बाद में दिया जाएगा लेकिन इजरायल से पहले इसके लिए हमास दोषी है। यह बात वहां के लोग महसूस भी कर रहे हैं और कैमरे पर कह भी रहे हैं।*
इस समय हमास और उसके समर्थक फिलिस्तीनियों का हाल उस नाराज आदमी की तरह हो गया है जिसे बंटवारे में बकरी मिल रही थी तो ऊंट की जिद्द करके बैठ गया। लेकिन झगड़ा बढ़ा तो उसे न ऊंट मिला और न बकरी। उसके पास पहले से जो मुर्गी थी वह भी हाथ से जाती हुई दिख रही है। इजरायल के साथ जिस टू नेशन चार्टर को हमास फॉलो करता है, उसको पाने का तरीका यह तो बिल्कुल नहीं हो सकता जो हमास ने अपनाया है।*
[11/28, 9:15 PM] chandrakanta2008rk: ,

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