[अर्पण मिश्रा सीतापुर उत्तर प्रदेश:
मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान चला गया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू का जिन्ना प्रेम देखिए और आप इसे चाहे तो गूगल पर सर्च कर सकते हैं | जिन्ना के साथ अपने व्यक्तिगत प्रेम के कारण जवाहरलाल नेहरू ने इस बंगले को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं किया ।
१९५५ में, एक कैबिनेट भाषण में जवाहरलाल नेहरूने सुझाव दिया कि इसे पाकिस्तान सरकार को दिया जाए, ताकि पाकिस्तान सरकार यहां मेरे प्रिय दोस्त जिन्ना की एक मेमोरियल बना सके।
लेकिन उनके ही कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिल सकी। क्योंकि, उस समय सिर्फ दो मंत्रियों को छोड़कर पूरा मंत्रीमंडल इसके खिलाफ था | फिर नेहरू को लगा की कही बगावत न हो जाए इसलिए वह खामोश हो गए ।
मोहम्मद अली जिन्ना ने उस वक्त पाकिस्तान में भारत के राजदूत श्री. प्रकाश के जरिए मुंबई के अपने आलीशान बंगले को पाने के लिए कई चिट्ठियां जवाहरलाल नेहरू को लिखी |
हालांकि भारत के विदेश मंत्री और भारतीय उच्चायोग ने सुझाव दिया कि हवेली को १९५६ में पाकिस्तान को सौंप दिया जाए, लेकिन इस सुझाव पर विचार नहीं किया गया।
फिर इस बंगले का असली मालिक कौन है इस पर एक लंबा मुकदमा चला | इस मुकदमे में जिन्ना की बेटी देना वाडिया, पाकिस्तान सरकार और भारत सरकार तीनों शामिल थे | दीना वाडिया ने यह तर्क दिया की चूंकि, मोहम्मद अली जिन्ना खोजा मुस्लिम था इसलिए इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता और इस संपत्ति पर मेरा मालिकाना हक है क्योंकि मैं उसकी बेटी हूं | पाकिस्तान सरकार का यह तर्क था कि यह संपत्ति पाकिस्तान सरकार की है क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के नागरिक हैं |
उसके बाद मोदी सरकार आयी और मोदी सरकार ने एक शत्रु संपत्ति का विशेष एक्ट बनाकर इस बंगले का अधिग्रहण कर लिया और इसे विदेश मंत्रालय को सौंप दिया।
अब यह प्रॉपर्टी विदेश मंत्रालय की संपत्ति है ।
सोचिए भारत की सीमा के अंदर स्थित मोहम्मद अली जिन्ना के बंगले का अधिग्रहण भी मोदी सरकार ने किया किसी कांग्रेसी सरकार में यह हिम्मत नहीं थी कि जिन्ना के बंगले का अधिग्रहण कर सके |